॥श्री गणेशाय नम:॥
॥श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः ॥
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सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण
[काव्य बीजं सनातनम्]

बालकाण्ड [77 सर्ग एवं 2280 श्लोक]

  1. सर्ग 1: नारदजी का वाल्मीकि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना
  2. सर्ग 2: तमसा तट पर क्रौंचवध की घटना से शोक संतप्त वाल्मीकि को ब्रह्मा द्वारा रामचरित्रमय काव्य लेखन का आदेश
  3. सर्ग 3: वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख
  4. सर्ग 4: महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण का निर्माण करना , लव-कुश का अयोध्या में रामायण गान सुनाना
  5. सर्ग 5: राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन
  6. सर्ग 6: राजा दशरथ के शासनकाल में अयोध्या और वहाँ के नागरिकों की उत्तम स्थिति का वर्णन
  7. सर्ग 7: राजमन्त्रियों के गुण और नीति का वर्णन
  8. सर्ग 8: राजा दशरथ का पुत्र के लिये अश्वमेधयज्ञ का प्रस्ताव और मन्त्रियों तथा ब्राह्मणों द्वारा उनका अनुमोदन
  9. सर्ग 9: सुमन्त्र का दशरथ को ऋष्यशृंग मुनि को बुलाने की सलाह और शान्ता से विवाह का प्रसंग सुनाना
  10. सर्ग 10: अंगदेश में ऋष्यश्रृंग के आने तथा शान्ता के साथ विवाह होने के प्रसंग का विस्तार के साथ वर्णन
  11. सर्ग 11: राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शान्ता और ऋष्यश्रृंग को अपने घर ले आना
  12. सर्ग 12: ऋषियों का दशरथ को और दशरथ का मन्त्रियों को यज्ञ की आवश्यक तैयारी करने के लिये आदेश देना
  13. सर्ग 13: यज्ञ की तैयारी, राजाओं को बुलाने के आदेश एवं उनका सत्कार तथा पत्नियों सहित राजा दशरथ का यज्ञ की दीक्षा लेना
  14. सर्ग 14: महाराज दशरथ के द्वारा अश्वमेध यज्ञ का सांगोपांग अनुष्ठान
  15. सर्ग 15: ऋष्यशृंग द्वारा राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ का आरम्भ, ब्रह्माजी का रावण के वध का उपाय ढूँढ़ निकालना
  16. सर्ग 16: श्रीहरि से रावणवध के लिये प्रार्थना, पुत्रेष्टि यज्ञ में प्राजापत्य पुरुष का प्रकट हो खीर अर्पण करना और रानियों का गर्भवती होना
  17. सर्ग 17: ब्रह्माजी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानरयूथपतियों की उत्पत्ति
  18. सर्ग 18: श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म, संस्कार, शीलस्वभाव एवं सद्गुण, राजा के दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार
  19. सर्ग 19: विश्वामित्र के मुख से श्रीराम को साथ ले जाने की माँग सुनकर राजा दशरथ का दुःखित एवं मूर्च्छित होना
  20. सर्ग 20: राजा दशरथ का विश्वामित्र को अपना पुत्र देने से इनकार करना और विश्वामित्र का कुपित होना
  21. सर्ग 21: विश्वामित्र के रोषपूर्ण वचन तथा वसिष्ठ का राजा दशरथ को समझाना
  22. सर्ग 22: दशरथ का स्वस्तिवाचन पूर्वक राम-लक्ष्मण को मुनि के साथ भेजना, विश्वामित्र से बला और अतिबला नामक विद्या की प्राप्ति
  23. सर्ग 23: विश्वामित्र सहित श्रीराम और लक्ष्मण का सरयू-गंगा संगम के समीप पुण्य आश्रम में रात को ठहरना
  24. सर्ग 24: श्रीराम और लक्ष्मण का गंगापार होते समय तुमुलध्वनि के विषय में प्रश्न, मलद, करूष एवं ताटका वन का परिचय
  25. सर्ग 25: श्रीराम के पूछने पर विश्वामित्रजी का ताटका की उत्पत्ति, विवाह एवं शाप आदि का प्रसंग सुना ताटका-वध के लिये प्रेरित करना
  26. सर्ग 26: श्रीराम द्वारा ताटका का वध
  27. सर्ग 27: विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को दिव्यास्त्र
  28. सर्ग 28: विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहारविधि बताना,अस्त्रों का उपदेश करना, श्रीराम का आश्रम एवं यज्ञस्थानके विषय में प्रश्न
  29. सर्ग 29: विश्वामित्रजी का श्रीराम से सिद्धाश्रम का पूर्ववृत्तान्त बताना और उन दोनों भाइयों के साथ अपने आश्रम पहुँचकर पूजित होना
  30. सर्ग 30: श्रीराम द्वारा विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा तथा राक्षसों का संहार
  31. सर्ग 31: श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियों सहित विश्वामित्र का मिथिला को प्रस्थान तथा मार्ग में संध्या के समय शोणभद्र तट पर विश्राम
  32. सर्ग 32: ब्रह्मपुत्र कुश पुत्रों का वर्णन, कुशनाभ की सौ कन्याओंका वायु के कोप से ‘कुब्जा’ होना
  33. सर्ग 33: राजा कुशनाभद्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह
  34. सर्ग 34: गाधि की उत्पत्ति, कौशिकी की प्रशंसा
  35. सर्ग 35: विश्वामित्र आदि का गंगाजी के तटपर रात्रिवास करना, गंगाजी की उत्पत्ति की कथा
  36. सर्ग 36: देवताओं का शिव-पार्वती को सुरतक्रीडा से निवृत्त करना तथा उमादेवी का देवताओं और पृथ्वी को शाप देना
  37. सर्ग 37: गंगा से कार्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग
  38. सर्ग 38: राजा सगर के पुत्रों की उत्पत्ति तथा यज्ञ की तैयारी
  39. सर्ग 39: इन्द्र के द्वारा राजा सगर के यज्ञ सम्बन्धी अश्व का अपहरण, सगरपुत्रों द्वारा सारी पृथ्वी का भेदन
  40. सर्ग 40: सगर के पुत्रों का पृथ्वी को खोदते हुए कपिलजी के पास पहुँचना और उनके रोष से जलकर भस्म होना
  41. सर्ग 41: सगर की आज्ञा से अंशुमान् का रसातल में जाकर घोड़े को ले आना और अपने चाचाओं के निधन का समाचार सुनाना
  42. सर्ग 42: ब्रह्माजी का भगीरथ को अभीष्ट वर देना, गंगा जी को धारण करनेके लिये भगवान् शङ्कर को राजी करना
  43. सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार
  44. सर्ग 44: ब्रह्माजी का भगीरथ को पितरों के तर्पण की आज्ञा देना, गंगावतरण के उपाख्यान की महिमा
  45. सर्ग 45: देवताओं और दैत्यों द्वारा क्षीर-समुद्र मन्थन, भगवान् रुद्र द्वारा हालाहल विष का पान, देवासुर-संग्राम में दैत्यों का संहार
  46. सर्ग 46: दिति का कश्यपजी से इन्द्र हन्ता पुत्र की प्राप्ति के लिये कुशप्लव में तप, इन्द्र का उनके गर्भ के सात टुकड़े कर डालना
  47. सर्ग 47: दिति का अपने पुत्रों को मरुद्गण बनाकर देवलोक में रखने के लिये इन्द्र से अनुरोध, इक्ष्वाकु-पुत्र विशाल द्वारा विशाला नगरी का निर्माण
  48. सर्ग 48: मुनियों सहित श्रीराम का मिथिलापुरी में पहुँचना, विश्वामित्रजी का उनसे अहल्या को शाप प्राप्त होने की कथा सुनाना
  49. सर्ग 49: इन्द्र को भेड़े के अण्डकोष से युक्त करना,भगवान् श्रीराम के द्वारा अहल्या का उद्धार
  50. सर्ग 50: राम आदि का मिथिला-गमन, राजा जनक द्वारा विश्वामित्र का सत्कार तथा उनका श्रीराम और लक्ष्मण के विषय में परिचय पाना
  51. सर्ग 51: शतानन्द को अहल्या के उद्धार का समाचार बताना,शतानन्द द्वारा श्रीराम का अभिनन्दन करते हुए विश्वामित्रजी के पूर्वचरित्र का वर्णन
  52. सर्ग 52: महर्षि वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र का सत्कार और कामधेनु को अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश
  53. सर्ग 53: विश्वामित्र का वसिष्ठ से उनकी कामधेनु को माँगना और उनका देने से अस्वीकार करना
  54. सर्ग 54: विश्वामित्र का वसिष्ठजी की गौ को बलपूर्वक ले जाना, गौका दुःखी होकर वसिष्ठजी से इसका कारण पूछना, विश्वामित्रजी की सेना का संहार करना
  55. सर्ग 55: अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके दिव्यास्त्र पाना, वसिष्ठजी का ब्रह्मदण्ड लेकर उनके सामने खड़ा होना
  56. सर्ग 56: विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठजी पर नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग,वसिष्ठ द्वारा ब्रह्मदण्ड से ही उनका शमन,विश्वामित्र का ब्राह्मणत्व की प्राप्ति के लिये तप करने का निश्चय
  57. सर्ग 57: विश्वामित्र की तपस्या, राजा त्रिशंकु का यज्ञ के लिये वसिष्ठजी से प्रार्थना करना,उनके इन्कार करने पर उन्हीं के पुत्रों की शरण में जाना
  58. सर्ग 58: वसिष्ठ ऋषि के पुत्रों का त्रिशंकु को शाप-प्रदान, उनके शाप से चाण्डाल हुए त्रिशंकु का विश्वामित्रजी की शरण में जाना
  59. सर्ग 59: विश्वामित्र का त्रिशंकु का यज्ञ कराने के लिये ऋषिमुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना
  60. सर्ग 60: ऋषियोंद्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग
  61. सर्ग 61: विश्वामित्र की पुष्कर तीर्थ में तपस्या तथा राजर्षि अम्बरीष का ऋचीक के मध्यम पुत्र शुनःशेप को यज्ञ-पशु बनाने के लिये खरीदकर लाना
  62. सर्ग 62: विश्वामित्र द्वारा शुनःशेप की रक्षा का सफल प्रयत्न और तपस्या
  63. सर्ग 63: विश्वामित्र को ऋषि एवं महर्षिपद की प्राप्ति, मेनका द्वारा उनका तपोभंग तथा ब्रह्मर्षिपद की प्राप्ति के लिये उनकी घोर तपस्या
  64. सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना
  65. सर्ग 65: विश्वामित्र की घोर तपस्या, उन्हें ब्राह्मणत्व की प्राप्ति तथा राजा जनक का उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवन को लौटना
  66. सर्ग 66: राजा जनक का विश्वामित्र और राम लक्ष्मण का सत्कार, धनुष का परिचय देना और धनुष चढ़ा देने पर श्रीराम के साथ ब्याह का निश्चय प्रकट करना
  67. सर्ग 67: श्रीराम के द्वारा धनुर्भंग तथा राजा जनक का विश्वामित्र की आज्ञा से राजा दशरथ को बुलाने के लिये मन्त्रियों को भेजना
  68. सर्ग 68: राजा जनक का संदेश पाकर मन्त्रियों सहित महाराज दशरथ का मिथिला जाने के लिये उद्यत होना
  69. सर्ग 69: दल-बलसहित राजा दशरथ की मिथिला-यात्रा और वहाँ राजा जनक के द्वारा उनका स्वागत-सत्कार
  70. सर्ग 70: राजा जनक का अपने भाई कुशध्वज को सांकाश्या नगरी से बुलवाना,वसिष्ठजी का श्रीराम और लक्ष्मण के लिये सीता तथा ऊर्मिला को वरण करना
  71. सर्ग 71: राजा जनक का अपने कल का परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मण के लिये क्रमशः सीता और ऊर्मिला को देने की प्रतिज्ञा करना
  72. सर्ग 72: विश्वामित्र द्वारा भरत और शत्रुज के लिये कुशध्वज की कन्याओं का वरण,राजा दशरथ का अपने पुत्रों के मंगल के लिये नान्दीश्राद्ध एवं गोदान करना
  73. सर्ग 73: श्रीराम आदि चारों भाइयों का विवाह
  74. सर्ग 74: राजा जनक का कन्याओं को भारी दहेज देकर राजा दशरथ आदि को विदा करना, मार्ग में शुभाशुभ शकुन और परशुरामजी का आगमन
  75. सर्ग 75: राजा दशरथ की बात अनसुनी करके परशुराम का श्रीराम को वैष्णव-धनुष पर बाण चढ़ाने के लिये ललकारना
  76. सर्ग 76: श्रीराम का वैष्णव-धनुष को चढ़ाकर अमोघ बाण के द्वारा परशुराम के तपःप्राप्तपुण्य लोकों का नाश करना तथा परशुराम का महेन्द्र पर्वत को लौट जाना
  77. सर्ग 77: राजा दशरथ का पुत्रों और वधुओं के साथ अयोध्या में प्रवेश, सीता और श्रीराम का पारस्परिक प्रेम

अयोध्याकाण्ड [119 सर्ग एवं 4286 श्लोक]

  1. सर्ग 1: श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार
  2. सर्ग 2: राजा दशरथ द्वारा श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव तथा सभासदों द्वारा उक्त प्रस्ताव का सहर्ष युक्तियुक्त समर्थन
  3. सर्ग 3: राज्याभिषेक की तैयारी , राजा दशरथ का श्रीराम को राजनीति की बातें बताना
  4. सर्ग 4: श्रीराम का माता को समाचार बताना और माता से आशीर्वाद पाकर लक्ष्मण से प्रेमपूर्वक वार्तालाप करना
  5. सर्ग 5: वसिष्ठजी का सीता सहित श्रीराम को उपवास व्रत की दीक्षा देना,राजा दशरथ का अन्तःपुर में प्रवेश
  6. सर्ग 6: सीता सहित श्रीराम का नियम परायण होना, हर्ष में भरे पुरवासियों द्वारा नगर की सजावट
  7. सर्ग 7: मन्थरा का कैकेयी को उभाड़ना, कैकेयी का उसे पुरस्कार में आभूषण देना और वर माँगने के लिये प्रेरित करना
  8. सर्ग 8: मन्थरा का पुनः राज्याभिषेक को कैकेयी के लिये अनिष्टकारी बताना, कुब्जा का पुनः श्रीराम राज्य को भरत के लिये भयजनक बताकर कैकेयी को भड़काना
  9. सर्ग 9: कुब्जा के कुचक्र से कैकेयी का कोप भवन में प्रवेश
  10. सर्ग 10: राजा दशरथ का कैकेयी के भवन में जाना, उसे कोपभवन में स्थित देखकर दुःखी होना और उसको अनेक प्रकार से सान्त्वना देना
  11. सर्ग 11: कैकेयी का राजा को दो वरों का स्मरण दिलाकर भरत के लिये अभिषेक और राम के लिये चौदह वर्षों का वनवास माँगना
  12. सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना
  13. सर्ग 13: राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय
  14. सर्ग 14: कैकेयी का राजा को अपने वरों की पूर्ति के लिये दुराग्रह दिखाना, राजा की आज्ञा से सुमन्त्रका श्रीराम को बुलाना
  15. सर्ग 15: सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिये उनके महल में जाना
  16. सर्ग 16: सुमन्त्र का श्रीराम को महाराज का संदेश सुनाना,श्रीराम का मार्ग में स्त्री पुरुषों की बातें सुनते हुए जाना
  17. सर्ग 17: श्रीराम का राजपथ की शोभा देखते और सुहृदों की बातें सुनते हुए पिता के भवन में प्रवेश
  18. सर्ग 18: श्रीराम का कैकेयी से पिता के चिन्तित होने का कारण पूछना,कैकेयी का कठोरतापूर्वक अपने माँगे हुए वरों का वृत्तान्त बताना
  19. सर्ग 19: श्रीराम का वन में जाना स्वीकार करके उनका माता कौसल्या के पास आज्ञा लेने के लिये जाना
  20. सर्ग 20: राजा दशरथ की अन्य रानियों का विलाप, श्रीराम का कौसल्याजी को अपने वनवास की बात बताना
  21. सर्ग 21: लक्ष्मण का श्रीराम को बलपूर्वक राज्य पर अधिकार कर लेने के लिये प्रेरित करना तथा श्रीराम का पिता की आज्ञा के पालन को ही धर्म बताना
  22. सर्ग 22:श्रीराम का लक्ष्मण को समझाते हुए अपने वनवास में दैव को ही कारण बताना और अभिषेक की सामग्री को हटा लेने का आदेश देना
  23. सर्ग 23: लक्ष्मण की ओज भरी बातें, उनके द्वारा दैव का खण्डन और पुरुषार्थ का प्रतिपादन
  24. सर्ग 24: कौसल्या का श्रीराम से अपने को भी साथ ले चलने के लिये आग्रह करना , श्रीराम का उन्हें रोकना और वन जाने के लिये उनकी अनुमति प्राप्त करना
  25. सर्ग 25: कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिये मङ्गलकामनापूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीराम का उन्हें प्रणाम करके सीता के भवन की ओर जाना
  26. सर्ग 26: श्रीराम को उदास देखकर सीता का उनसे इसका कारण पूछना और श्रीराम का वन में जाने का निश्चय बताते हुए सीता को घर में रहने के लिये समझाना
  27. सर्ग 27: सीता की श्रीराम से अपने को भी साथ ले चलने के लिये प्रार्थना
  28. सर्ग 28: श्रीराम का वनवास के कष्ट का वर्णन करते हुए सीता को वहाँ चलने से मना करना
  29. सर्ग 29: सीता का श्रीराम के समक्ष उनके साथ अपने वनगमन का औचित्य बताना
  30. सर्ग 30: सीता का वन में चलने के लिये अधिकआग्रह, विलाप और घबराहट देखकर श्रीराम का उन्हें साथ ले चलने की स्वीकृति देना
  31. सर्ग 31: श्रीराम और लक्ष्मण का संवाद, श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण का सुहृदों से पूछकर और दिव्य आयुध लाकर वनगमन के लिये तैयार होना
  32. सर्ग 32: लक्ष्मण सहित श्रीराम द्वारा ब्राह्मणों, ब्रह्मचारियों, सेवकों, त्रिजट ब्राह्मण और सुहृज्जनों को धन का वितरण
  33. सर्ग 33: सीता और लक्ष्मणसहित श्रीराम का दुःखी नगरवासियों के मुख से तरह की बातें सुनते हुए पिता के दर्शन के लिये कैकेयी के महल में जाना
  34. सर्ग 34: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रानियों सहित राजा दशरथ के पास जाकर वनवास के लिये विदा माँगना, राजा का शोक और मूर्छा
  35. सर्ग 35: सुमन्त्र के समझाने और फटकारने पर भी कैकेयी का टस-से-मस न होना
  36. सर्ग 36: दशरथ का श्रीराम के साथ सेना और खजाना भेजने का आदेश, कैकेयी द्वारा इसका विरोध, राजा का श्रीराम के साथ जाने की इच्छा प्रकट करना
  37. सर्ग 37: श्रीराम आदि का वल्कल-वस्त्र-धारण, गुरु वसिष्ठ का कैकेयी को फटकारते हुए सीता के वल्कलधारण का अनौचित्य बताना
  38. सर्ग 38: राजा दशरथ का सीता को वल्कल धारण कराना अनुचित बताकर कैकेयी को फटकारना और श्रीराम का उनसे कौसल्या पर कृपादृष्टि रखने के लिये अनुरोध करना
  39. सर्ग 39: राजा दशरथ का विलाप,कौसल्या का सीता को पतिसेवा का उपदेश, सीता के द्वारा उसकी स्वीकृति
  40. सर्ग 40: सीता, राम और लक्ष्मण का दशरथ की परिक्रमा करके कौसल्या आदि को प्रणाम करना, सीतासहित श्रीराम और लक्ष्मण का रथमें बैठकर वन की ओर प्रस्थान
  41. सर्ग 41: श्रीराम के वनगमन से रनवास की स्त्रियों का विलाप तथा नगरनिवासियों की शोकाकुल अवस्था
  42. सर्ग 42: राजा दशरथ का पृथ्वी पर गिरना, श्रीराम के लिये विलाप करना, कैकेयी को अपने पास आने से मना करना और उसे त्याग देना
  43. सर्ग 43: महारानी कौसल्या का विलाप
  44. सर्ग 44: सुमित्रा का कौसल्या को आश्वासन देना
  45. सर्ग 45: नगर के वृद्ध ब्राह्मणों का श्रीराम से लौट चलने के लिये आग्रह करना तथा उन सबके साथ श्रीराम का तमसा तट पर पहुँचना
  46. सर्ग 46: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रात्रि में तमसा-तट पर निवास, पुरवासियों को सोते छोड़कर वन की ओर जाना
  47. सर्ग 47: प्रातःकाल उठने पर पुरवासियों का विलाप करना और निराश होकर नगर को लौटना
  48. सर्ग 48: नगरनिवासिनी स्त्रियोंका विलाप करना
  49. सर्ग 49: ग्रामवासियों की बातें सुनते हुए श्रीराम का कोसल जनपद को लाँघते हुए आगे जाना और वेदश्रुति, गोमती एवं स्यन्दि का नदियों को पार करके सुमन्त्र से कुछ कहना
  50. सर्ग 50: श्रीराम का शृङ्गवेरपुर में गङ्गा तट पर पहुँचकर रात्रि में निवास, वहाँ निषादराज गुह द्वारा उनका सत्कार
  51. सर्ग 51: निषादराज गुह के समक्ष लक्ष्मण का विलाप
  52. सर्ग 52: श्रीराम की आज्ञासे गुह का नाव मँगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझाबुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना,सीताकी गङ्गाजी से प्रार्थना
  53. सर्ग 53: श्रीराम का राजा को उपालम्भ देते हुए कैकेयी से कौसल्या आदि के अनिष्ट की आशङ्का बताकर लक्ष्मण को अयोध्या लौटाने के लिये प्रयत्न करना
  54. सर्ग 54: लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम का भरद्वाज-आश्रम में जाना, मुनि का उन्हें चित्रकूट पर्वत पर ठहरने का आदेश तथा चित्रकूट की महत्ता एवं शोभा का वर्णन
  55. सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तटपर रात्रि में निवास करना
  56. सर्ग 56: श्रीराम आदि का चित्रकूट में पहुँचना, वाल्मीकिजी का दर्शन करके श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मणद् वारा पर्णशाला का निर्माण,सबका कुटी में प्रवेश
  57. सर्ग 57: सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना, उनके मुख से श्रीराम का संदेश सुनकर पुरवासियों का विलाप, राजा दशरथ और कौसल्या की मूर्छा तथा अन्तःपुर की रानियों का आर्तनाद
  58. सर्ग 58: महाराज दशरथ की आज्ञा से सुमन्त्र का श्रीराम और लक्ष्मण के संदेश सुनाना
  59. सर्ग 59: सुमन्त्र द्वारा श्रीराम के शोक से जडचेतन एवं अयोध्यापुरी की दुरवस्था का वर्णन तथा राजा दशरथ का विलाप
  60. सर्ग 60: कौसल्या का विलाप और सारथि सुमन्त्र का उन्हें समझाना
  61. सर्ग 61: कौसल्या का विलापपूर्वक राजा दशरथ को उपालम्भ देना
  62. सर्ग 62: दुःखी हुए राजा दशरथ का कौसल्या को हाथ जोड़कर मनाना और कौसल्या का उनके चरणों में पड़कर क्षमा माँगना
  63. सर्ग 63: राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनिकुमार के मारे जाने का प्रसङ्ग सुनाना
  64. सर्ग 64: राजा दशरथ का अपने द्वारा मुनिकुमार के वध से दुःखी हुए उनके मातापिता के विलाप और उनके दिये हुए शाप का प्रसंग सुनाकर अपने प्राणों को त्याग देना
  65. सर्ग 65: वन्दीजनों का स्तुतिपाठ, राजा दशरथ को दिवंगत हुआ जान उनकी रानियों का करुण-विलाप
  66. सर्ग 66: राजा के लिये कौसल्या का विलाप और कैकेयी की भर्त्सना, मन्त्रियों का राजा के शव को तेल से भरे हुए कड़ाह में सुलाना, पुरी की श्रीहीनता और पुरवासियों का शोक
  67. सर्ग 67: मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मन्त्रियों का राजा के बिना होने वाली देश की दुरवस्था का वर्णन करके वसिष्ठजी से किसी को राजा बनाने के लिये अनुरोध
  68. सर्ग 68: वसिष्ठजी की आज्ञा से पाँच दूतों का अयोध्या से केकयदेश के राजगृह नगर में जाना
  69. सर्ग 69: भरत की चिन्ता, मित्रों द्वारा उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास तथा उनके पूछने पर भरत का मित्रों के समक्ष अपने देखे हुए भयंकर दुःस्वप्न का वर्णन करना
  70. सर्ग 70: दूतों का भरत को वसिष्ठजी का संदेश सुनाना, भरत का पिता आदि की कुशल पूछना, शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करना
  71. सर्ग 71: रथ और सेनासहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश
  72. सर्ग 72: भरत का कैकेयी से पिता के परलोकवास का समाचार पा दुःखी हो विलाप करना,कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तान्त से अवगत होना
  73. सर्ग 73: भरत का कैकेयी को धिक्कारना और उसके प्रति महान् रोष प्रकट करना
  74. सर्ग 74: भरत का कैकेयी को कड़ी फटकार देना
  75. सर्ग 75: कौसल्या के सामने भरत का शपथ खाना
  76. सर्ग 76: राजा दशरथ का अन्त्येष्टि संस्कार
  77. सर्ग 77: भरत का पिता के श्राद्ध में ब्राह्मणों को बहुत धन-रत्न आदि का दान, पिता की चिता भूमि पर जाकर भरत और शत्रुघ्न का विलाप करना
  78. सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना
  79. सर्ग 79: भरत का अभिषेक-सामग्री की परिक्रमा करके श्रीराम को ही राज्य का अधिकारी बताकर उन्हें लौटा लाने के लिये चलने के निमित्त व्यवस्था करने की सबको आज्ञा देना
  80. सर्ग 80: अयोध्या से गङ्गा तट तक सुरम्य शिविर और कूप आदि से युक्त सुखद राजमार्ग का निर्माण
  81. सर्ग 81: प्रातःकाल के मङ्गलवाद्य-घोष को सुनकर भरत का दुःखी होना और उसे बंद कराकर विलाप करना, वसिष्ठजी का सभा में आकर मन्त्री आदि को बुलाने के लिये दूत भेजना
  82. सर्ग 82: वसिष्ठजी का भरत को राज्य पर अभिषिक्त होने के लिये आदेश देना,भरत का उसे अनुचित बताकर श्रीराम को लाने के लिये वन में चलने की तैयारी का आदेश देना
  83. सर्ग 83: भरत की वनयात्रा और शृङ्गवेरपुर में रात्रिवास
  84. सर्ग 84: निषादराज गुह का अपने बन्धुओं भेंट की सामग्री ले भरत के पास जाना और उनसे आतिथ्य स्वीकार करने के लिये अनुरोध करना
  85. सर्ग 85: गुह और भरत की बातचीत तथा भरत का शोक
  86. सर्ग 86: निषादराज गुह के द्वारा लक्ष्मण के सद्भाव और विलाप का वर्णन
  87. सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना
  88. सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना
  89. सर्ग 89: भरत का सेनासहित गङ्गापार करके भरद्वाज के आश्रम पर जाना
  90. सर्ग 90: भरत और भरद्वाज मुनि की भेंट एवं बातचीत तथा मुनि का अपने आश्रम पर ही ठहरने का आदेश देना
  91. सर्ग 91: भरद्वाज मुनि के द्वारा सेनासहित भरत का दिव्य सत्कार
  92. सर्ग 92: भरत का भरद्वाज मुनि से श्रीराम के आश्रम जाने का मार्ग जानना, वहाँ से चित्रकूट के लिये सेनासहित प्रस्थान करना
  93. सर्ग 93: सेनासहित भरत की चित्रकूट-यात्रा का वर्णन
  94. सर्ग 94: श्रीराम का सीता को चित्रकूट की शोभा दिखाना
  95. सर्ग 95: श्रीराम का सीता के प्रति मन्दाकिनी नदी की शोभा का वर्णन
  96. सर्ग 96: लक्ष्मण का शाल-वृक्षपर चढ़कर भरत की सेना को देखना और उनके प्रति अपना रोषपूर्ण उद्गार प्रकट करना
  97. सर्ग 97: श्रीराम का लक्ष्मण के रोष को शान्त करके भरत के सद्भाव का वर्णन करना,लक्ष्मण का लज्जित होना और भरत की सेना का पर्वत के नीचे छावनी डालना
  98. सर्ग 98: भरत के द्वारा श्रीराम के आश्रम की खोज का प्रबन्ध तथा उन्हें आश्रम का दर्शन
  99. सर्ग 99: भरत का शत्रुघ्न आदि के साथ श्रीराम के आश्रम पर जाना, उनकी पर्णशाला देख रोते-रोते चरणों में गिरना, श्रीराम का उन सबको हृदय से लगाना
  100. सर्ग 100: श्रीराम का भरत को कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना
  101. सर्ग 101: श्रीराम का भरत से वन में आगमन का प्रयोजन पूछना, भरत का उनसे राज्य ग्रहण करने के लिये कहना और श्रीराम का उसे अस्वीकार कर देना
  102. सर्ग 102: भरत का पुनः श्रीराम से राज्य ग्रहण करने का अनुरोध करके उनसे पिता की मृत्यु का समाचार बताना
  103. सर्ग 103: श्रीराम आदि का विलाप, पिता के लिये जलाञ्जलि-दान, पिण्डदान और रोदन
  104. सर्ग 104: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के द्वारा माताओं की चरणवन्दना तथा वसिष्ठजी को प्रणाम करके श्रीराम आदि का सबके साथ बैठना
  105. सर्ग 105: भरत का श्रीराम को राज्य ग्रहण करने के लिये कहना, श्रीराम का पिताकी आज्ञा का पालन करने के लिये ही राज्य ग्रहण न करके वन में रहने का ही दृढ़ निश्चय बताना
  106. सर्ग 106: भरत की पुनः श्रीराम से अयोध्या लौटने और राज्य ग्रहण करने की प्रार्थना
  107. सर्ग 107: श्रीराम का भरत को समझाकर उन्हें अयोध्या जाने का आदेश देना
  108. सर्ग 108: जाबालि का नास्तिकों के मत का अवलम्बन करके श्रीराम को समझाना
  109. सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन
  110. सर्ग 110: वसिष्ठजी का ज्येष्ठ के ही राज्याभिषेक का औचित्य सिद्ध करना और श्रीराम से राज्य ग्रहण करने के लिये कहना
  111. सर्ग 111: श्रीराम को पिताकी आज्ञा के पालन से विरत होते न देख भरत का धरना देने को तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना
  112. सर्ग 112: ऋषियों का भरत को श्रीराम की आज्ञा के अनुसार लौट जाने की सलाह देना, भरत का पुनः प्रार्थना करना, श्रीराम का उन्हें चरणपादुका देकर विदा करना
  113. सर्ग 113: भरत का भरद्वाज से मिलते हुए अयोध्या को लौट आना
  114. सर्ग 114: भरत के द्वारा अयोध्या की दुरवस्था का दर्शन तथा अन्तःपुर में प्रवेश करके भरत का दुःखी होना
  115. सर्ग 115: भरत का नन्दिग्राम में जाकर श्रीराम की चरणपादुकाओं को राज्य पर अभिषिक्त करके उन्हें निवेदनपूर्वक राज्य का सब कार्य करना
  116. सर्ग 116: वृद्ध कुलपतिसहित बहुत-से ऋषियों का चित्रकूट छोड़कर दूसरे आश्रम में जाना
  117. सर्ग 117: श्रीराम आदि का अत्रिमुनि के आश्रम पर जाकर उनके द्वारा सत्कृत होना तथा अनसूया द्वारा सीता का सत्कार
  118. सर्ग 118: सीता-अनसूया-संवाद, अनसूया का सीता को प्रेमोपहार देना तथा अनसूया के पूछने पर सीता का उन्हें अपने स्वयंवर की कथा सुनाना
  119. सर्ग 119: अनसूया की आज्ञा से सीता का उनके दिये हुए वस्त्राभूषणों को धारण करके श्रीरामजी के पास आना

अरण्यकाण्ड [75 सर्ग एवं 2440 श्लोक]

  1. सर्ग 1: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का तापसों के आश्रम मण्डल में सत्कार
  2. सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण
  3. सर्ग 3: विराध और श्रीराम की बातचीत, श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध पर प्रहार तथा विराध का इन दोनों भाइयों को साथ लेकर दूसरे वन में जाना
  4. सर्ग 4: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध का वध
  5. सर्ग 5: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना, देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन
  6. सर्ग 6: वानप्रस्थ मुनियों का राक्षसों के अत्याचार से अपनी रक्षा के लिये श्रीरामचन्द्रजी से प्रार्थना करना और श्रीराम का उन्हें आश्वासन दे
  7. सर्ग 7: सीता और भ्रातासहित श्रीराम का सुतीक्ष्ण के आश्रम पर जाकर उनसे बातचीत करना तथा उनसे सत्कृत हो रात में वहीं ठहरना
  8. सर्ग 8: प्रातःकाल सुतीक्ष्ण से विदा ले श्रीराम,लक्ष्मण, सीता का वहाँ से प्रस्थान
  9. सर्ग 9: सीता का श्रीराम से निरपराध प्राणियों को न मारने और अहिंसा-धर्म का पालन करने के लिये अनुरोध
  10. सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना
  11. सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
  12. सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति
  13. सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना
  14. सर्ग 14: पञ्चवटी के मार्ग में जटायु का मिलना और श्रीराम को अपना विस्तृत परिचय देना
  15. सर्ग 15: पञ्चवटी के रमणीय प्रदेश में श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पर्णशाला का निर्माण तथा उसमें सीता और लक्ष्मणसहित श्रीराम का निवास
  16. सर्ग 16: लक्ष्मण के द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन और भरत की प्रशंसा तथा श्रीराम का उन दोनों के साथ गोदावरी नदी में स्नान
  17. सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना
  18. सर्ग 18: श्रीराम के टाल देने पर शूर्पणखा का लक्ष्मण से प्रणययाचना करना, फिर उनके भी टालने पर उसका सीता पर आक्रमण और लक्ष्मण का उसके नाक-कान काट लेना
  19. सर्ग 19: शूर्पणखा के मुख से उसकी दुर्दशा का वृत्तान्त सुनकर क्रोध में भरे हए खर का श्रीराम आदि के वध के लिये चौदह राक्षसों को भेजना
  20. सर्ग 20: श्रीराम द्वारा खर के भेजे हुए चौदह राक्षसों का वध
  21. सर्ग 21: शूर्पणखा का खर के पास आकर उन राक्षसों के वध का समाचार बताना और राम का भय दिखाकर उसे युद्ध के लिये उत्तेजित करना
  22. सर्ग 22: चौदह हजार राक्षसों की सेना के साथ खर-दूषण का जनस्थान से पञ्चवटी की ओर प्रस्थान
  23. सर्ग 23: भयंकर उत्पातों को देखकर भी खर का उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस सेना का श्रीराम के आश्रम के समीप पहुँचना
  24. सर्ग 24: श्रीराम का तात्कालिक शकुनों द्वारा राक्षसों के विनाश और अपनी विजय की सम्भावना करके सीतासहित लक्ष्मण को पर्वत की गुफा में भेजना और युद्ध के लिये उद्यत होना
  25. सर्ग 25: राक्षसों का श्रीराम पर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा राक्षसों का संहार
  26. सर्ग 26: श्रीराम के द्वारा दूषणसहित चौदह सहस्र राक्षसों का वध
  27. सर्ग 27: त्रिशिरा का वध
  28. सर्ग 28: खर के साथ श्रीराम का घोर युद्ध
  29. सर्ग 29: श्रीराम का खर को फटकारना तथा खर का भी उन्हें कठोर उत्तर देकर उनके ऊपर गदा का प्रहार करना और श्रीराम द्वारा उस गदा का खण्डन
  30. सर्ग 30: श्रीराम के व्यङ्ग करने पर खर का उनके ऊपर साल वृक्ष का प्रहार करना, श्रीराम का तेजस्वी बाण से खर को मार गिराना
  31. सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना
  32. सर्ग 32: शूर्पणखा का लंका में रावण के पास जाना
  33. सर्ग 33: शूर्पणखा का रावण को फटकारना
  34. सर्ग 34: रावण के पूछने पर शर्पणखा का उससे राम, लक्ष्मण और सीता का परिचय देते हुए सीता को भार्या बनाने के लिये उसे प्रेरित करना
  35. सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना
  36. सर्ग 36: रावण का मारीच से श्रीराम के अपराध बताकर उनकी पत्नी सीता के अपहरण में सहायता के लिये कहना
  37. सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना
  38. सर्ग 38: श्रीराम की शक्ति के विषय में अपना अनुभव बताकर मारीच का रावण को उनका अपराध करने से मना करना
  39. सर्ग 39: मारीच का रावण को समझाना
  40. सर्ग 40: रावण का मारीच को फटकारना और सीताहरण के कार्य में सहायता करने की आज्ञा देना
  41. सर्ग 41: मारीच का रावण को विनाश का भय दिखाकर पुनः समझाना
  42. सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना
  43. सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना
  44. सर्ग 44: श्रीराम के द्वारा मारीच का वध और उसके द्वारा सीता और लक्ष्मण के पुकारने का शब्द सुनकर श्रीराम की चिन्ता
  45. सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना
  46. सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना
  47. सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना
  48. सर्ग 48: रावण के द्वारा अपने पराक्रम का वर्णन और सीता द्वारा उसको कड़ी फटकार
  49. सर्ग 49: रावण द्वारा सीता का अपहरण, सीता का विलाप और उनके द्वारा जटायु का दर्शन
  50. सर्ग 50: जटायु का रावण को सीताहरण के दुष्कर्म से निवृत्त होने के लिये समझाना और अन्त में युद्ध के लिये ललकारना
  51. सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
  52. सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण
  53. सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना
  54. सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना
  55. सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना
  56. सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना
  57. प्रक्षिप्त सर्ग: ब्रह्माजी की आज्ञा से देवराज इन्द्र का निद्रासहित लङ्का में जाकर सीता को दिव्य खीर अर्पित करना और उनसे विदा लेकर लौटना
  58. सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना
  59. सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मणसहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना
  60. सर्ग 59: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत
  61. सर्ग 60: श्रीराम का विलाप करते हुए वृक्षों और पशुओं से सीता का पता पूछना, भ्रान्त होकर रोना और बारंबार उनकी खोज करना
  62. सर्ग 61: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज और उनके न मिलने से श्रीराम की व्याकुलता
  63. सर्ग 62: श्रीराम का विलाप
  64. सर्ग 63: श्रीराम का विलाप
  65. सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना
  66. सर्ग 65: लक्ष्मण का श्रीराम को समझा-बुझाकर शान्त करना
  67. सर्ग 66: लक्ष्मण का श्रीराम को समझाना
  68. सर्ग 67: श्रीराम और लक्ष्मण की पक्षिराज जटायु से भेंट तथा श्रीराम का उन्हें गले से लगाकर रोना
  69. सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार
  70. सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना
  71. सर्ग 70: श्रीराम और लक्ष्मण का परस्पर विचार करके कबन्ध की दोनों भुजाओं को काट डालना तथा कबन्ध के द्वारा उनका स्वागत
  72. सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन
  73. सर्ग 72: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा चिता की आग में कबन्ध का दाह तथा उसका दिव्य रूप में प्रकट होकर उन्हें सग्रीव से मित्रता करने के लिये कहना
  74. सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना
  75. सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना
  76. सर्ग 75: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत तथा उन दोनों भाइयों का पम्पासरोवर के तट पर जाना

किष्किंधाकाण्ड [67 सर्ग एवं 2455 श्लोक]

  1. सर्ग 1: पम्पासरोवर के दर्शन से श्रीराम की व्याकुलता, दोनों भाइयों को ऋष्यमूककी ओर आते देख सुग्रीव तथा अन्य वानरोंका भयभीत होना
  2. सर्ग 2: सुग्रीव तथा वानरों की आशङ्का, हनुमान्जी द्वारा उसका निवारण तथा सुग्रीव का हनुमान जी को श्रीराम-लक्ष्मण के पास उनका भेद लेने के लिये भेजना
  3. सर्ग 3: हनुमान जी का श्रीराम और लक्ष्मण से वन में आने का कारण पूछना और अपना तथा सुग्रीव का परिचय देना
  4. सर्ग 4: लक्ष्मण का हनुमान जी से श्रीराम के वन में आने और सीताजी के हरे जाने का वृत्तान्त बताना, हनुमान् जी का उन्हें आश्वासन देकर उन दोनों भाइयों को अपने साथ ले जाना
  5. सर्ग 5: श्रीराम और सुग्रीव की मैत्री तथा श्रीराम द्वारा वालि वध की प्रतिज्ञा
  6. सर्ग 6: सुग्रीव का श्रीराम को सीताजी के आभूषण दिखाना तथा श्रीराम का शोक एवं रोषपूर्ण वचन
  7. सर्ग 7: सुग्रीव का श्रीराम को समझाना तथा श्रीराम का सुग्रीव को उनकी कार्य सिद्धि का विश्वास दिलाना
  8. सर्ग 8: सुग्रीव का श्रीराम से अपना दुःख निवेदन करना और श्रीराम का उन्हें आश्वासन देते हुए दोनों भाइयोंमें वैर होने का कारण पूछना
  9. सर्ग 9: सुग्रीव का श्रीरामचन्द्रजी को वाली के साथ अपने वैर होने का कारण बताना
  10. सर्ग 10: भाई के साथ वैर का कारण बताने के प्रसङ्ग में सुग्रीव का वाली को मनाने और वाली द्वारा अपने निष्कासित होने का वृत्तान्त सुनाना
  11. सर्ग 11: वाली का दुन्दुभि दैत्य को मारकर उसकी लाश को मतङ्ग वन में फेंकना, मतङ्गमुनि का वाली को शाप देना, सुग्रीव का राम से साल-भेदन के लिये आग्रह करना
  12. सर्ग 12: सुग्रीव का किष्किन्धा में आकर वाली को ललकारना और युद्ध में पराजित होना, वहाँ श्रीराम का पहचान के लिये गजपुष्पीलता डालकर उन्हें पुनः युद्ध के लिये भेजना
  13. सर्ग 13: श्रीराम आदि का मार्ग में वृक्षों, विविधजन्तुओं, जलाशयों तथा सप्तजन आश्रम का दूर से दर्शन करते हुए पुनः किष्किन्धापुरी में पहुँचना
  14. सर्ग 14: वाली-वध के लिये श्रीराम का आश्वासन पाकर सुग्रीव की विकट गर्जना
  15. सर्ग 15: सुग्रीव की गर्जना सुनकर वाली का युद्ध के लिये निकलना और तारा का उसे रोककर सुग्रीव और श्रीराम के साथ मैत्री कर लेने के लिये समझाना
  16. सर्ग 16: वाली का तारा को डाँटकर लौटाना और सुग्रीव से जूझना तथा श्रीराम के बाण से घायल होकर पृथ्वी पर गिरना
  17. सर्ग 17: वाली का श्रीरामचन्द्रजी को फटकारना
  18. सर्ग 18: श्रीराम का वाली की बात का उत्तर देते हुए उसे दिये गये दण्ड का औचित्य बताना,वाली का अपने अपराध के लिये क्षमा माँगते हुए अङ्गद की रक्षा के लिये प्रार्थना करना
  19. सर्ग 19: अङ्गदसहित तारा का भागे हुए वानरों से बात करके वाली के समीप आना और उसकी दुर्दशा देखकर रोना
  20. सर्ग 20: तारा का विलाप
  21. सर्ग 21: हनुमान जी का तारा को समझाना और तारा का पति के अनुगमन का ही निश्चय करना
  22. सर्ग 22: वाली का सुग्रीव और अङ्गद से अपने मन की बात कहकर प्राणों को त्याग देना
  23. सर्ग 23: तारा का विलाप
  24. सर्ग 24: सुग्रीव का शोकमग्न होकर श्रीराम से प्राणत्याग के लिये आज्ञा माँगना, तारा का श्रीराम से अपने वध के लिये प्रार्थना करना और श्रीराम का उसे समझाना
  25. सर्ग 25: श्रीराम का सुग्रीव, तारा और अङ्गद को समझाना तथा वाली के दाह-संस्कार के लिये आज्ञा प्रदान करना,अङ्गद के द्वारा उसका दाह-संस्कार कराना और उसे जलाञ्जलि देना
  26. सर्ग 26: हनुमान जी का सुग्रीव के अभिषेक के लिये श्रीरामचन्द्रजी से किष्किन्धा में पधारने की प्रार्थना, तत्पश्चात् सुग्रीव और अङ्गद का अभिषेक
  27. सर्ग 27: प्रस्रवणगिरि पर श्रीराम और लक्ष्मण की परस्पर बातचीत
  28. सर्ग 28: श्रीराम के द्वारा वर्षा-ऋतु का वर्णन
  29. सर्ग 29: हनुमान जी के समझाने से सुग्रीव का नील को वानर-सैनिकों को एकत्र करने का आदेश देना
  30. सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना
  31. सर्ग 31: सुग्रीव पर लक्ष्मण का रोष, लक्ष्मण का किष्किन्धा के द्वार पर जाकर अङ्गद को सुग्रीव के पास भेजना, प्लक्ष और प्रभाव का सुग्रीव को कर्तव्य का उपदेश देना
  32. सर्ग 32: हनुमान जी का चिन्तित हुए सुग्रीव को समझाना
  33. सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना
  34. सर्ग 34: सुग्रीव का लक्ष्मण के पास जाना और लक्ष्मण का उन्हें फटकारना
  35. सर्ग 35: तारा का लक्ष्मण को युक्तियुक्त वचनों द्वारा शान्त करना
  36. सर्ग 36: सुग्रीव का अपनी लघुता तथा श्रीराम की महत्ता बताते हए लक्ष्मण से क्षमा माँगना और लक्ष्मण का उनकी प्रशंसा करके उन्हें अपने साथ चलने के लिये कहना
  37. सर्ग 37: सुग्रीव का हनुमान् जी को वानरसेना के संग्रह के लिये दोबारा दूत भेजने की आज्ञा देना, समस्त वानरों का किष्किन्धा के लिये प्रस्थान
  38. सर्ग 38: सुग्रीव का भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम, सुग्रीव का अपने किये हुए सैन्य संग्रह विषयक उद्योग को बताना और उसे सुनकर श्रीराम का प्रसन्न होना
  39. सर्ग 39: श्रीरामचन्द्रजी का सुग्रीव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा विभिन्न वानरयूथपतियों का अपनी सेनाओं के साथ
  40. सर्ग 40: श्रीराम की आज्ञा से सुग्रीव का सीताकी खोज के लिये पूर्व दिशा में वानरों को भेजना और वहाँ के स्थानों का वर्णन करना
  41. सर्ग 41: सुग्रीव का दक्षिण दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए वहाँ प्रमुख वानर वीरों को भेजना
  42. सर्ग 42: सुग्रीव का पश्चिम दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए सुषेण आदि वानरों को वहाँ भेजना
  43. सर्ग 43: सुग्रीव का उत्तर दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए शतबलि आदि वानरों को वहाँ भेजना
  44. सर्ग 44: श्रीराम का हनुमान जी को अँगूठी देकर भेजना
  45. सर्ग 45: विभिन्न दिशाओं में जाते हुए वानरों का सुग्रीव के समक्ष अपने उत्साहसूचक वचन सुनाना
  46. सर्ग 46: सुग्रीव का श्रीरामचन्द्रजी को अपने भूमण्डल-भ्रमण का वृत्तान्त बताना
  47. सर्ग 47: पूर्व आदि तीन दिशाओं में गये हुए वानरों का निराश होकर लौट आना
  48. सर्ग 48: दक्षिण दिशा में गये हुए वानरों का सीता की खोज आरम्भ करना
  49. सर्ग 49: अङ्गद और गन्धमादन के आश्वासन देने पर वानरों का पुनःउत्साहपूर्वक अन्वेषण-कार्य में प्रवृत्त होना
  50. सर्ग 50: भूखे-प्यासे वानरों का एक गुफा में घुसकर वहाँ दिव्य वृक्ष, दिव्य सरोवर, दिव्य भवन तथा एक वृद्धा तपस्विनी को देखना और हनुमान जी का उसका परिचय पूछना
  51. सर्ग 51: हनुमान जी के पूछने पर वृद्धा तापसी का अपना तथा उस दिव्य स्थान का परिचय देकर सब वानरों को भोजन के लिये कहना
  52. सर्ग 52: तापसी स्वयंप्रभा के पूछने पर वानरों का उसे अपना वृत्तान्त बताना और उसके प्रभाव से गुफा के बाहर निकलकर समुद्रतट पर पहुँचना
  53. सर्ग 53: लौटने की अवधि बीत जाने पर भी कार्य सिद्ध न होने के कारण सुग्रीव के कठोर दण्ड से डरने वाले अङ्गद आदि वानरों का उपवास करके प्राण त्याग देने का निश्चय
  54. सर्ग 54: हनुमान जी का भेदनीति के द्वारा वानरों को अपने पक्ष में करके अङ्गद को अपने साथ चलने के लिये समझाना
  55. सर्ग 55: अङ्गदसहित वानरों का प्रायोपवेशन
  56. सर्ग 56: सम्पाति से वानरों को भय, उनके मुख से जटायु के वध की बात सुनकर सम्पाति का दुःखी होना और अपने को नीचे उतारने के लिये वानरों से अनुरोध करना
  57. सर्ग 57: अङ्गद का सम्पाति को जटायु के मारे जाने का वृत्तान्त बताना तथा राम-सुग्रीव की मित्रता एवं वालिवध का प्रसंग सुनाकर अपने आमरण उपवास का कारण निवेदन करना
  58. सर्ग 58: सम्पाति का अपने पंख जलने की कथा सुनाना, सीता और रावण का पता बताना तथा वानरों की सहायता से समुद्र-तटपर जाकर भाई को जलाञ्जलि देना
  59. सर्ग 59: सम्पाति का अपने पुत्र सुपार्श्व के मुख से सुनी हुई सीता और रावण को देखने की घटना का वृत्तान्त बताना
  60. सर्ग 60: सम्पाति की आत्मकथा
  61. सर्ग 61: सम्पाति का निशाकर मुनि को अपने पंख के जलने का कारण बताना
  62. सर्ग 62: निशाकर मुनि का सम्पाति को सान्त्वना देते हुए उन्हें भावी श्रीरामचन्द्रजी के कार्य में सहायता देने के लिये जीवित रहने का आदेश देना
  63. सर्ग 63: सम्पाति का पंखयुक्त होकर वानरों को उत्साहित करके उड़ जाना और वानरों का वहाँ से दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान करना
  64. सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना
  65. सर्ग 65: जाम्बवान् और अङ्गद की बातचीत तथा जाम्बवान् का हनुमान्जी को प्रेरित करने के लिये उनके पास जाना
  66. सर्ग 66: जाम्बवान् का हनुमानजी को उनकी उत्पत्ति कथा सुनाकर समुद्रलङ्घन के लिये उत्साहित करना
  67. सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना

सुन्दरकाण्ड [68 सर्ग एवं 2855 श्लोक]

  1. सर्ग 1: हनुमान् जी के द्वारा समुद्र का लङ्घन, मैनाक के द्वारा उनका स्वागत, सुरसा पर उनकी विजय तथा सिंहिका का वध,लंका की शोभा देखना
  2. सर्ग 2: लंकापुरी का वर्णन, उसमें प्रवेश करने के विषय में हनुमान जी का विचार, उनका लघुरूप से पुरी में प्रवेश तथा चन्द्रोदय का वर्णन
  3. सर्ग 3: लंकापुरी का अवलोकन करके हनुमान् जी का विस्मित होना, निशाचरी लंका का उन्हें रोकना और उनकी मार से विह्वल होकर प्रवेश की अनुमति देना
  4. सर्ग 4: हनुमान जी का लंकापुरी एवं रावण के अन्तःपुर में प्रवेश
  5. सर्ग 5: हनुमान जी का रावणके अन्तःपुरमें घर-घरमें सीताको ढूँढ़ना और उन्हें न देखकर दुःखी होना
  6. सर्ग 6: हनुमान जी का रावण तथा अन्यान्य राक्षसों के घरों में सीताजी की खोज करना
  7. सर्ग 7: रावण के भवन एवं पुष्पक विमान का वर्णन
  8. सर्ग 8: हनुमान् जी के द्वारा पुनः पुष्पक विमान का दर्शन
  9. सर्ग 9: हनुमान जी का रावण के श्रेष्ठ भवन पुष्पक विमान तथा रावण के रहने की सुन्दर हवेली को देखकर उसके भीतर सोयी हुई सहस्रों सुन्दरी स्त्रियों का अवलोकन करना
  10. सर्ग 10: हनुमान जी का अन्तःपुर में सोये हुए रावण तथा गाढ़ निद्रा में पड़ी हुई उसकी स्त्रियों को देखना तथा मन्दोदरी को सीता समझकर प्रसन्न होना
  11. सर्ग 11: हनुमान जी का पुनः अन्तःपुर में और उसकी पानभूमि में सीता का पता लगाना, धर्मलोप की आशंका और स्वतः उसका निवारण होना
  12. सर्ग 12: सीता के मरण की आशंका से हनुमान्जी का शिथिल होना, फिर उत्साह का आश्रय ले उनकी खोज करना और कहीं भी पता न लगने से पुनः उनका चिन्तित होना
  13. सर्ग 13: सीताजी के नाश की आशंका से हनुमान्जी की चिन्ता, श्रीराम को सीता के न मिलने की सचना देने से अनर्थ की सम्भावना देख हनुमान का पुनः खोजने का विचार करना
  14. सर्ग 14: हनुमान जी का अशोकवाटिका में प्रवेश करके उसकी शोभा देखना तथा एक अशोकवृक्ष पर छिपे रहकर वहीं से सीता का अनुसन्धान करना
  15. सर्ग 15: वन की शोभा देखते हुए हनुमान जी का एक चैत्यप्रासाद (मन्दिर)के पास सीता को दयनीय अवस्था में देखना, पहचानना और प्रसन्न होना
  16. सर्ग 16: हनुमान जी का मन-ही-मन सीताजी के शील और सौन्दर्य की सराहना करते हुए उन्हें कष्ट में पड़ी देख स्वयं भी उनके लिये शोक करना
  17. सर्ग 17: भयंकर राक्षसियों से घिरी हुई सीता के दर्शन से हनुमान जी का प्रसन्न होना
  18. सर्ग 18: अपनी स्त्रियों से घिरे हुए रावण का अशोकवाटिका में आगमन और हनुमान जी का उसे देखना
  19. सर्ग 19: रावण को देखकर दुःख, भय और चिन्ता में डूबी हुई सीता की अवस्था का वर्णन
  20. सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन
  21. सर्ग 21: सीताजी का रावण को समझाना और उसे श्रीराम के सामने नगण्य बताना
  22. सर्ग 22: रावण का सीता को दो मास की अवधि देना, सीता का उसे फटकारना, फिर रावण का उन्हें धमकाना
  23. सर्ग 23: राक्षसियों का सीताजी को समझाना
  24. सर्ग 24: सीताजी का राक्षसियों की बात मानने से इनकार कर देना तथा राक्षसियों का उन्हें मारने-काटने की धमकी देना
  25. सर्ग 25: राक्षसियों की बात मानने से इनकार करके शोक-संतप्त सीता का विलाप करना
  26. सर्ग 26: सीता का करुण-विलाप तथा अपने प्राणों को त्याग देने का निश्चय करना
  27. सर्ग 27: त्रिजटा का स्वप्न, राक्षसों के विनाश और श्रीरघुनाथजी की विजय की शुभ सूचना
  28. सर्ग 28: विलाप करती हुई सीताका प्राण त्यागके लिये उद्यत होना
  29. सर्ग 29: सीताजी के शुभ शकुन
  30. सर्ग 30: सीताजी से वार्तालाप करने के विषय में हनुमान जी का विचार करना
  31. सर्ग 31: हनुमान जी का सीता को सुनाने के लिये श्रीराम-कथा का वर्णन करना
  32. सर्ग 32: सीताजी का तर्क-वितर्क
  33. सर्ग 33: सीताजी का हनुमान जी को अपना परिचय देते हुए अपने वनगमन और अपहरण का वृत्तान्त बताना
  34. सर्ग 34: सीताजी का हनुमान् जी के प्रति संदेह और उसका समाधान तथा हनुमान् जी के द्वारा श्रीरामचन्द्रजी के गुणों का गान
  35. सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना
  36. सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना
  37. सर्ग 37: सीता का हनुमान जी से श्रीराम को शीघ्र बुलाने का आग्रह, हनुमान जी का सीता से अपने साथ चलने का अनुरोध तथा सीता का अस्वीकार करना
  38. सर्ग 38: सीताजी का हनुमान जी को पहचान के रूप में चित्रकट पर्वत पर घटित हए एक कौए के प्रसंग को सुनाना, श्रीराम को शीघ्र बुलाने के लिये अनुरोध करना और चूड़ामणि देना
  39. सर्ग 39: समद्र-तरण के विषय में शङ्कित हुई सीता को वानरों का पराक्रम बताकर हनुमान जी का आश्वासन देना
  40. सर्ग 40: सीता का श्रीराम से कहने के लिये पुनः संदेश देना तथा हनुमान जी का उन्हें आश्वासन दे उत्तर-दिशा की ओर जाना
  41. सर्ग 41: हनुमान जी के द्वारा प्रमदावन (अशोकवाटिका)-का विध्वंस
  42. सर्ग 42: राक्षसियों के मुख से एक वानर के द्वारा प्रमदावन के विध्वंस का समाचार सुनकर रावण का किंकर नामक राक्षसों को भेजना और हनुमान जी के द्वारा उन सबका संहार
  43. सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध
  44. सर्ग 44: प्रहस्त-पुत्र जम्बुमाली का वध
  45. सर्ग 45: मन्त्री के सात पुत्रों का वध
  46. सर्ग 46: रावण के पाँच सेनापतियों का वध
  47. सर्ग 47: रावणपुत्र अक्षकुमार का पराक्रम और वध
  48. सर्ग 48: इन्द्रजित् और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना
  49. सर्ग 49: रावण के प्रभावशाली स्वरूप को देखकर हनुमान जी के मन में अनेक प्रकार के विचारों का उठना
  50. सर्ग 50: रावण का प्रहस्त के द्वारा हनुमान जी सेलङ्का में आने का कारण पुछवाना और हनुमान् का अपने को श्रीराम का दूत बताना
  51. सर्ग 51: हनुमान जी का श्रीराम के प्रभाव का वर्णन करते हुए रावण को समझाना
  52. सर्ग 52: विभीषण का दूत के वध को अनुचित बताकर उसे दूसरा कोई दण्ड देने के लिये कहना तथा रावण का उनके अनरोध को स्वीकार कर लेना
  53. सर्ग 53: राक्षसों का हनुमान जी की पूँछ में आग लगाकर उन्हें नगर में घुमाना
  54. सर्ग 54: लङ्कापुरी का दहन और राक्षसों का विलाप
  55. सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण
  56. सर्ग 56: हनुमान जी का पुनः सीताजी से मिलकर लौटना और समुद्र को लाँघना
  57. सर्ग 57: हनुमान जी का समद्र को लाँघकर जाम्बवान् और अङ्गद आदि सुहृदों से मिलना
  58. सर्ग 58: जाम्बवान् के पूछने पर हनुमान जी का अपनी लङ्का यात्रा का सारा वृत्तान्त सुनाना
  59. सर्ग 59: हनुमान जी का सीता की दुरवस्था बताकर वानरों को लङ्का पर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित करना
  60. सर्ग 60: अङ्गद का लङ्का को जीतकर सीता को ले आने का उत्साहपूर्ण विचार और जाम्बवान् के द्वारा उसका निवारण
  61. सर्ग 61: वानरों का मधुवन में जाकर वहाँ के मधु एवं फलों का मनमाना उपभोग करना और वनरक्षक को घसीटना
  62. सर्ग 62: वानरों द्वारा मधुवन के रक्षकों और दधिमुख का पराभव तथा सेवकों सहितदधिमुख का सुग्रीव के पास जाना
  63. सर्ग 63: दधिमुख से मधुवन के विध्वंस का समाचार सुनकर सुग्रीव का हनुमान् आदि वानरों की सफलता के विषय में अनुमान
  64. सर्ग 64: दधिमुख से सुग्रीव का संदेश सुनकर अङ्गद-हनुमान् आदि वानरों का किष्किन्धा में पहुँचना और हनमान जी का श्रीराम को प्रणाम करके सीता देवी के दर्शन का समाचार बताना
  65. सर्ग 65: हनुमान जी का श्रीराम को सीता का समाचार सुनाना
  66. सर्ग 66: चूडामणि को देखकर और सीता का समाचार पाकर श्रीराम का उनके लिए विलाप
  67. सर्ग 67: हनुमान जी का भगवान् श्रीराम को सीता का संदेश सुनाना
  68. सर्ग 68: हनुमान जी का सीता के संदेह और अपने द्वारा उनके निवारण का वृत्तान्त बताना

युद्धकाण्ड [128 सर्ग एवं 5692 श्लोक]

  1. सर्ग 1: हनुमान जी की प्रशंसा करके श्रीराम का उन्हें हृदय से लगाना और समुद्र को पार करने के लिये चिन्तित होना
  2. सर्ग 2: सुग्रीव का श्रीराम को उत्साह प्रदान
  3. सर्ग 3: हनुमान जी का लङ्का का वर्णन करके भगवान् श्रीराम से सेना को कूच करने की आज्ञा देने के लिये प्रार्थना करना
  4. सर्ग 4: श्रीराम आदि के साथ वानर-सेना का प्रस्थान और समुद्र-तट पर उसका पड़ाव
  5. सर्ग 5: श्रीराम का सीता के लिये शोक और विलाप
  6. सर्ग 6: रावण का कर्तव्य-निर्णय के लिये अपने मन्त्रियों से समुचित सलाह देने का अनुरोध करना
  7. सर्ग 7: राक्षसों का रावण और इन्द्रजित् के बल-पराक्रम का वर्णन करते हुए उसे राम पर विजय पाने का विश्वास दिलाना
  8. सर्ग 8: प्रहस्त, दुर्मुख, वज्रदंष्ट, निकुम्भ और वज्रहनु का रावण के सामने शत्रु-सेना को मार गिराने का उत्साह दिखाना
  9. सर्ग 9: विभीषण का रावण से श्रीराम की अजेयता बताकर सीताको लौटा देने के लिये अनुरोध करना
  10. सर्ग 10: विभीषण का रावण के महल में जाना, उसे अपशकुनों का भय दिखाकर सीता को लौटा देने के लिये प्रार्थना करना
  11. सर्ग 11: रावण और उसके सभासदों का सभाभवन में एकत्र होना
  12. सर्ग 12: रावण का सीता हरण का प्रसंग बताना , कुम्भकर्ण का पहले तो उसे फटकारना, फिर समस्त शत्रुओं के वध का स्वयं ही भार उठाना
  13. सर्ग 13: महापार्श्व का रावण को उकसाना और रावण का शाप के कारण असमर्थ बताना तथा अपने पराक्रम के गीत गाना
  14. सर्ग 14: विभीषण का राम को अजेय बताकर उनके पास सीता को लौटा देने की सम्मति देना
  15. सर्ग 15: इन्द्रजित् द्वारा विभीषण का उपहास तथा विभीषण का उसे फटकारकर सभा में अपनी उचित सम्मति देना
  16. सर्ग 16: रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना
  17. सर्ग 17: विभीषण का श्रीराम की शरण में आना और श्रीराम का अपने मन्त्रियों के साथ उन्हें आश्रय देने के विषय में विचार करना
  18. सर्ग 18: भगवान् श्रीराम का शरणागत की रक्षा का महत्त्व एवं अपना व्रत बताकरविभीषण से मिलना
  19. सर्ग 19: विभीषण का आकाश से उतरकर भगवान् श्रीराम के चरणों की शरण लेना, श्रीराम का रावण-वध की प्रतिज्ञा करना
  20. सर्ग 20: शार्दूल के कहने से रावण का शुक को दूत बनाकर सुग्रीव के पास संदेश भेजना, सुग्रीव का रावण के लिये उत्तर देना
  21. सर्ग 21: श्रीराम का समुद्र के तट पर तीन दिनों तक धरना देने पर भी समुद्र के दर्शन न देने से बाण मारकर विक्षुब्ध कर देना
  22. सर्ग 22: नल के द्वारा सागर पर सौ योजन लंबे पुल का निर्माण तथा उसके द्वारा श्रीराम सहित वानरसेना का उस पार पड़ाव डालना
  23. सर्ग 23: श्रीराम का लक्ष्मण से उत्पातसूचक लक्षणों का वर्णन और लङ्का पर आक्रमण
  24. सर्ग 24: श्रीराम का लक्ष्मण से लङ्का की शोभा का वर्णन कर सेना को व्यूहबद्ध करना, रावण का अपने बल की डींग हाँकना
  25. सर्ग 25: रावण का शुक और सारण को गुप्त रूप से वानरसेना में भेजना, श्रीराम का संदेश लेकर लङ्का में लौट रावण को समझाना
  26. सर्ग 26: सारण का रावण को पृथक-पृथक वानर यूथपतियों का परिचय देना
  27. सर्ग 27: वानरसेना के प्रधान यूथपतियों का परिचय
  28. सर्ग 28: शुक के द्वारा सुग्रीव के मन्त्रियों का, मैन्द और द्विविद का, हनुमान् का, श्रीराम, लक्ष्मण, विभीषण और सग्रीव का परिचय देना
  29. सर्ग 29: रावण का शुक और सारण को फटकारना,उसके भेजे गुप्तचरों का श्रीराम की दया से वानरों के चंगुल से छूटकर लङ्का में आना
  30. सर्ग 30: रावण के भेजे हुए गुप्तचरों एवं शार्दूल का उससे वानर-सेना का समाचार बताना और मुख्य-मुख्य वीरों का परिचय देना
  31. सर्ग 31: मायारचित श्रीराम का कटा मस्तक दिखाकर रावण द्वारा सीता को मोह में डालने का प्रयत्न
  32. सर्ग 32: श्रीराम के मारे जाने का विश्वास करके सीता का विलाप तथा रावण का सभा में जाकर मन्त्रियों के सलाह से युद्धविषयक उद्योग करना
  33. सर्ग 33: सरमा का सीता को सान्त्वना देना, रावण की माया का भेद खोलना, श्रीराम के आगमन और उनके विजयी होने का विश्वास दिलाना
  34. सर्ग 34: सीता के अनुरोध से सरमा का उन्हें मन्त्रियोंसहित रावण का निश्चित विचार बताना
  35. सर्ग 35: माल्यवान् का रावण को श्रीराम से संधि करने के लिये समझाना
  36. सर्ग 36: माल्यवान् पर आक्षेप और नगर की रक्षा का प्रबन्ध करके रावण का अपने अन्तःपुर में जाना
  37. सर्ग 37: विभीषण का श्रीराम से लङ्का की रक्षा के प्रबन्ध का वर्णन तथा श्रीराम द्वारा लङ्का के विभिन्न द्वारों पर आक्रमण करने के लिये अपने सेनापतियों की नियुक्ति
  38. सर्ग 38: श्रीराम का प्रमुख वानरों के साथ सुवेल पर्वत पर चढ़कर वहाँ रात में निवास करना
  39. सर्ग 39: वानरोंसहित श्रीराम का सुवेलशिखर से लङ्कापुरी का निरीक्षण करना
  40. सर्ग 40: सुग्रीव और रावण का मल्लयुद्ध
  41. सर्ग 41: श्रीराम का सुग्रीव को दुःसाहस से रोकना, लङ्का के चारों द्वारों पर वानरसैनिकों की नियक्ति, रामदत अङद का रावण के महल में पराक्रम तथा वानरों के आक्रमण से राक्षसों को भय
  42. सर्ग 42: लङ्का पर वानरों की चढ़ाई तथा राक्षसों के साथ उनका घोर युद्ध
  43. सर्ग 43: द्वन्द्वयुद्ध में वानरों द्वारा राक्षसों की पराजय
  44. सर्ग 44: रात में वानरों और राक्षसों का घोर युद्ध, अङ्गद के द्वारा इन्द्रजित् की पराजय, इन्द्रजित् द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण को बाँधना
  45. सर्ग 45: इन्द्रजित् के बाणों से श्रीराम और लक्ष्मण का अचेत होना और वानरों का शोक करना
  46. सर्ग 46: श्रीराम और लक्ष्मण को मूर्च्छित देख वानरों का शोक, इन्द्रजित् का पिता को शत्रुवध का वृत्तान्त बताना
  47. सर्ग 47: वानरों द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण की रक्षा, सीता को पुष्पकविमान द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण का दर्शन कराना और सीता रुदन
  48. सर्ग 48: सीता का विलाप और त्रिजटा का उन्हें समझा-बुझाकर श्रीराम-लक्ष्मण के जीवित होने का विश्वास दिलाना
  49. सर्ग 49: श्रीराम का सचेत हो लक्ष्मण के लिये विलाप करना और स्वयं प्राणत्याग का विचार करके वानरों को लौट जाने की आज्ञा देना
  50. सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित् समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना
  51. सर्ग 51: श्रीराम के बन्धनमुक्त होने का पता पाकर चिन्तित हए रावण का धूम्राक्ष को युद्ध के लिये भेजना
  52. सर्ग 52: धूम्राक्ष का युद्ध और हनुमान जी के द्वारा उसका वध
  53. सर्ग 53: वज्रदंष्ट्र का सेनासहित युद्ध के लिये प्रस्थान, वानरों और राक्षसों का युद्ध, अङ्गद द्वारा राक्षसों का संहार
  54. सर्ग 54: वज्रदंष्ट्र और अङ्गद का युद्ध तथा अङ्गद के हाथ से उस निशाचर का वध
  55. सर्ग 55: रावण की आज्ञा से अकम्पन आदि राक्षसों का युद्ध में आना और वानरों के साथ उनका घोर युद्ध
  56. सर्ग 56: हनुमान जी के द्वारा अकम्पन का वध
  57. सर्ग 57: प्रहस्त का रावण की आज्ञा से विशाल सेनासहित युद्ध के लिये प्रस्थान
  58. सर्ग 58: नील के द्वारा प्रहस्त का वध
  59. सर्ग 59: प्रहस्त की मृत्यु से दुःखी रावण का युद्ध के लिये पधारना, लक्ष्मण का युद्ध में आना, श्रीराम से परास्त होकर रावण का लङ्का जाना
  60. सर्ग 60: अपनी पराजय से दुःखी रावण की आज्ञा से सोये कुम्भकर्ण का जगाया जाना और उसे देखकर वानरों का भयभीत होना
  61. सर्ग 61: विभीषण का श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय देना, श्रीराम की आज्ञा से वानरों का लङ्का के द्वारों पर डट जाना
  62. सर्ग 62: कुम्भकर्ण का रावण के भवन में प्रवेश तथा रावण का राम से भय बताकर उसे शत्रुसेना के विनाश के लिये प्रेरित करना
  63. सर्ग 63: कुम्भकर्ण का रावण को उसके कुकृत्यों के लिये उपालम्भ देना और उसे धैर्य बँधाते हुए युद्धविषयक उत्साह प्रकट करना
  64. सर्ग 64: महोदर का कुम्भकर्ण के प्रति आक्षेप करके रावण को बिना युद्ध के ही अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति का उपाय बताना
  65. सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा
  66. सर्ग 66: कुम्भकर्ण के भय से भागे हुए वानरों का अङ्गद द्वारा प्रोत्साहन और आवाहन, कुम्भकर्ण द्वारा वानरों का संहार
  67. सर्ग 67: कम्भकर्ण का भयंकर युद्ध और श्रीराम के हाथ से उसका वध
  68. सर्ग 68: कुम्भकर्ण के वध का समाचार सुनकर रावण का विलाप
  69. सर्ग 69: रावण के पुत्रों और भाइयों का युद्ध के लिये जाना और नरान्तकका अङ्गद के द्वारा वध
  70. सर्ग 70: हनुमान जी के द्वारा देवान्तक और त्रिशिरा का, नील के द्वारा महोदर का तथा ऋषभ के द्वारा महापार्श्व का वध
  71. सर्ग 71: अतिकाय का भयंकर युद्ध और लक्ष्मण के द्वारा उसका वध
  72. सर्ग 72: पुरी की रक्षा के लिए रावण की चिंता और राक्षसों को सतर्क रहने का उसका आदेश
  73. सर्ग 73: इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र ने वानर सेना सहित राम और लक्ष्मण को किया स्तब्ध
  74. सर्ग 74: जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय से दिव्य औषधियों का पर्वत लाने और इन औषधियों की गंध को श्री राम , लक्ष्मण और सभी वानरों के स्वास्थ्य को बहाल करने का आदेश दिया
  75. सर्ग 75: लंकापुरी का दहन और राक्षसों और वानरों के बीच भयानक युद्ध
  76. सर्ग 76: अंगद द्वारा कम्पन और प्रजंग का वध , द्विविद द्वारा शोणितक्ष का वध , मैन्द द्वारा युपक्ष का वध और सुग्रीव द्वारा कुम्भ का वध
  77. सर्ग 77: हनुमान द्वारा निकुंभ का वध
  78. सर्ग 78: रावण की आज्ञा पर मकराक्ष के युद्ध के लिए प्रस्थान
  79. सर्ग 79: श्री रामचंद्र द्वारा मकराक्ष का वध
  80. सर्ग 80: रावण की आज्ञा पर इंद्रजीत के भीषण युद्ध और उसके वध के बारे में श्री राम और लक्ष्मण के बीच चर्चा
  81. सर्ग 81: इंद्रजीत द्वारा मायावी सीता का वध
  82. सर्ग 82: हनुमान के नेतृत्व में बंदरों और रात के उल्लुओं के बीच युद्ध , श्री राम के पास हनुमान की वापसी और इंद्रजीत का निकुंभलिका - मंदिर का दहन
  83. सर्ग 83: सीता की मृत्यु का समाचार सुनकर श्री राम का शोक से मूर्च्छित होना और लक्ष्मण द्वारा उन्हें मनाकर पुरुषार्थ के लिए तैयार होना
  84. सर्ग 84: श्री राम को इंद्रजीत के प्रेम का रहस्य बताकर और लक्ष्मण से निकुंभिला को अपनी सेना के साथ मंदिर भेजने का अनुरोध करके विभीषण को सीता के जीवित रहने का विश्वास
  85. सर्ग 85: निकुंभिला मंदिर के पास सेना के साथ विभीषण और लक्ष्मण के आगमन के अनुरोध पर इंद्रजीत को मारने के लिए लक्ष्मण को श्री रामचंद्र का आदेश
  86. सर्ग 86: बंदरों और राक्षसों के बीच लड़ाई , हनुमान द्वारा राक्षस सेना का विनाश , और जिस तरह से लक्ष्मण उसे इंद्रजीत को एक द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती देते हुए देखते हैं
  87. सर्ग 87: इंद्रजीत और विभीषण के बीच गुस्से भरी बातचीत
  88. सर्ग 88: लक्ष्मण और इंद्रजीत की क्रोध भरी बातचीत और भीषण युद्ध
  89. सर्ग 89: राक्षसों पर विभीषण का आक्रमण , वनरुथपतियों का उनका प्रोत्साहन , वानर द्वारा लक्ष्मण और उनके घोड़ों द्वारा इंद्रजीत के सारथी का वध
  90. सर्ग 90: इंद्रजीत और लक्ष्मण का भयानक युद्ध और इंद्रजीत का वध
  91. सर्ग 91: लक्ष्मण और विभीषण आदि श्री रामचन्द्र के पास जाकर इन्द्रजीत के वध का समाचार सुनकर प्रसन्न हुए , लक्ष्मण को हृदय से लगा कर उनकी स्तुति करने लगे और सुषेण द्वारा लक्ष्मण आदि का उपचार करने लगे
  92. सर्ग 92: सुपार्श्व के समझाने पर रावण का दुःख और सीता को मारने से उसका बचना
  93. सर्ग 93: श्री राम द्वारा राक्षस सेना का संहार
  94. सर्ग 94: दैत्यों का विलाप
  95. सर्ग 95: रावण ने शत्रु को मारने का उत्साह प्रकट करने के लिए अपने मंत्रियों को बुलाकर सबके साथ युद्धभूमि में पराक्रम का प्रदर्शन किया
  96. सर्ग 96: सुग्रीव द्वारा राक्षस सेना का विनाश और विरुपाक्ष का वध
  97. सर्ग 97: सुग्रीव के साथ महोदरा का भीषण युद्ध और वध
  98. सर्ग 98: अंगद द्वारा महापर्व का वध
  99. सर्ग 99: श्री राम और रावण का युद्ध
  100. सर्ग 100: राम और रावण का युद्ध , रावण की शक्ति से लक्ष्मण का मूर्छित होना और युद्ध से रावण का बच निकलना
  101. सर्ग 101: हनुमान द्वारा लाई गई औषधि से सुषेण के प्रयोग से विलाप और लक्ष्मण का जागरण
  102. सर्ग 102: इंद्र द्वारा भेजे गए रथ पर सवार होकर रावण से युद्ध करते श्री राम
  103. सर्ग 103: श्री राम द्वारा रावण को फटकारना और उसके द्वारा घायल रावण को रथ में युद्ध के मैदान से बाहर ले जाना
  104. सर्ग 104: सारथी को रावण की ललकार और सारथी ने रावण को उसके उत्तर से संतुष्ट कर उसका रथ रणभूमि में पहुँचा दिया
  105. सर्ग 105: अगस्त्य मुनि श्री राम की विजय के लिए आदित्य हृदय के पाठ की सहमति देते हैं
  106. सर्ग 106: रावण के रथ को देखकर मातलि को राम की चेतावनी , रावण की हार का आभास , साथ ही राम की जीत का संकेत करने वाले शुभ शकुन
  107. सर्ग 107: श्री राम और रावण का भीषण युद्ध
  108. सर्ग 108: श्री राम द्वारा रावण का वध
  109. सर्ग 109: विभीषण का विलाप और श्री राम ने उन्हें समझाया और रावण के अंतिम संस्कार का आदेश दिया
  110. सर्ग 110: रावण की पत्नियों का विलाप
  111. सर्ग 111: मंदोदरी का विलाप और रावण का दाह संस्कार
  112. सर्ग 112: विभीषण का राज्याभिषेक और हनुमान द्वारा रघुनाथ का सीता को संदेश
  113. सर्ग 113: सीता से बातचीत के बाद हनुमान की वापसी और श्री राम को उनका संदेश
  114. सर्ग 114: श्री राम की आज्ञा पर विभीषण सीता को अपने पास ले आए और सीता ने अपने प्रिय चंद्र का मुख देखा
  115. सर्ग 115: श्री राम ने सीता के चरित्र पर संदेह करते हुए उन्हें स्वीकार करने से इंकार कर दिया और उन्हें कहीं और जाने के लिए कहा
  116. सर्ग 116: सीता ने श्री राम को अपमानजनक उत्तर देकर अपनी पवित्रता की परीक्षा लेने के लिए अग्नि में प्रवेश किया
  117. सर्ग 117: भगवान राम के पास देवताओं का आगमन और ब्रह्म देवताओं द्वारा उनकी दिव्यता की अभिव्यक्ति और उनकी स्तुति
  118. सर्ग 118: मूर्तिमान अग्निदेव का सीता के साथ प्राकट्य और श्री राम द्वारा सीता को श्री राम को समर्पित कर प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करना
  119. सर्ग 119: महादेव के आदेश से, श्री राम और लक्ष्मण राजा दशरथ को प्रणाम करते हैं जो विमान से आए थे और दशरथ अपने दोनों पुत्रों और सीता को आवश्यक संदेश लेकर इंद्रलोक जाते हैं
  120. सर्ग 120: इंद्र ने श्री राम के अनुरोध पर मृत बंदरों को पुनर्जीवित किया , देवताओं और शेष वानर सेना के प्रस्थान
  121. सर्ग 121: अयोध्या जाने के लिए श्री राम की तत्परता और उनकी आज्ञा पर पुष्पक विमान के लिए विभीषण का आदेश
  122. सर्ग 122: श्री राम की आज्ञा पर विभीषण द्वारा वानरों का विशेष आतिथ्य और सुग्रीव और विभीषण सहित वानरों के साथ पुष्पकविमान द्वारा श्री राम का अयोध्या के लिए प्रस्थान
  123. सर्ग 123: श्री राम सीता को अयोध्या की तीर्थयात्रा के दौरान रास्ते में आने वाले स्थानों को दिखाते हुए
  124. सर्ग 124: महर्षियों से मिलने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्री राम का भारद्वाज आश्रम में अवतरण
  125. सर्ग 125: हनुमान ने निषादराज गुहा और भरत को श्री राम के आगमन की सूचना दी और प्रसन्न भरत ने उन्हें उपहार देने की घोषणा की
  126. सर्ग 126: हनुमान श्री राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास की सारी कथा सुनाते हैं
  127. सर्ग 127: अयोध्या में राम के स्वागत की तैयारी , भरत के साथ राम से मिलने के लिए नंदीग्राम में राम का आगमन , राम का आगमन , भरत और अन्य लोगों से मिलना, कुबेर को पुष्पकविमान भेजना
  128. सर्ग 128: भरत का श्री राम को राज्य लौटाना , श्री राम का तीर्थ यात्रा , राज्याभिषेक , वानरों को संदेश और पुस्तक का महत्व

उत्तरकाण्ड [111 सर्ग एवं 3432 श्लोक]

  1. सर्ग 01: श्रीराम के दरबार में महर्षियों का आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीराम के प्रश्न
  2. सर्ग 02: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवामुनि की उत्पत्ति का कथन
  3. सर्ग 03: विश्रवा से वैश्रवण (कुबेर ) की उत्पत्ति, उनकी तपस्या, वरप्राप्ति तथा लङ्का में निवास
  4. सर्ग 04: राक्षसवंश का वर्णन हेति, विद्युत्केश और सुकेश की उत्पत्ति
  5. सर्ग 05: सुकेश के पुत्र माल्यवान्, सुमाली और माली की संतानों का वर्णन
  6. सर्ग 06: देवताओं का भगवान् शङ्कर की सलाह से राक्षसों के वध के लिये भगवान् विष्णु की शरण में जाना, राक्षसों का देवताओं पर आक्रमण और भगवान् विष्णु का उनकी सहायता के लिये आना
  7. सर्ग 07: भगवान् विष्णु द्वारा राक्षसों का संहार और पलायन
  8. सर्ग 08: माल्यवान् का युद्ध और पराजय तथा सुमाली आदि सब राक्षसोंका रसातल में प्रवेश
  9. सर्ग 09: रावण आदि का जन्म और उनका तप के लिये गोकर्ण-आश्रम में जाना
  10. सर्ग 10:  रावण आदि की तपस्या और वर प्राप्ति
  11. सर्ग 11: रावण का संदेश सुनकर पिताकी आज्ञा से कुबेर का लङ्का को छोड़कर कैलास पर जाना, लङ्का में रावण का राज्याभिषेक तथा राक्षसों का निवास
  12. सर्ग 12: शूर्पणखा तथा रावण आदि तीनों भाइयों का विवाह और मेघनाद का जन्म
  13. सर्ग 13: रावण द्वारा बनवाये गये शयनागार में कुम्भकर्ण का सोना, रावण का अत्याचार, कुबेर का दूत भेजना तथा रावण का उस दूत को मार डालना
  14. सर्ग 14: मन्त्रियोंसहित रावण का यक्षों पर आक्रमण और उनकी पराजय
  15. सर्ग 15: माणिभद्र तथा कुबेर की पराजय और रावण द्वारा पुष्पकविमान का अपहरण
  16. सर्ग 16: नन्दीश्वर का रावण को शाप, भगवान् शङ्कर द्वारा रावण का मान-भङ्ग तथा उनसे चन्द्रहास नामक खड्ग की प्राप्ति
  17. सर्ग 17: रावण से तिरस्कृत ब्रह्मर्षि कन्या वेदवती का उसे शाप देकर अग्नि में प्रवेश करना और दूसरे जन्म में सीता के रूप में प्रादुर्भूत होना
  18. सर्ग 18: रावण द्वारा मरुत्त की पराजय तथा इन्द्र आदि देवताओं का मयूर आदि पक्षियों को वरदान देना
  19. सर्ग 19: रावण के द्वारा अनरण्य का वध तथा उनके द्वारा उसे शाप की प्राप्ति
  20. सर्ग 20: नारदजी का रावण को समझाना, रावण का युद्ध के लिये यमलोक को जाना तथा नारदजी का इस युद्ध के विषय में विचार करना
  21. सर्ग 21: रावण का यमलोक पर आक्रमण और उसके द्वारा यमराज के सैनिकों का संहार
  22. सर्ग 22: यमराज और रावण का युद्ध, यम का रावण के वध के लिये उठाये हए कालदण्ड को ब्रह्माजी के कहने से लौटा लेना, विजयी रावण का यमलोक से प्रस्थान
  23. सर्ग 23: रावण के द्वारा निवातकवचों से मैत्री, कालकेयों का वध तथा वरुण पुत्रों की पराजय
  24. सर्ग 24: रावण द्वारा अपहृत हुई देवता आदि की कन्याओं और स्त्रियों का विलाप एवं शाप, रावण का रोती हुई शूर्पणखा को आश्वासन देना और उसे खर के साथ दण्डकारण्य में भेजना
  25. सर्ग 25: यज्ञों द्वारा मेघनाद की सफलता, विभीषण का रावण को पर-स्त्री-हरण के दोष बताना, कुम्भीनसी को आश्वासन दे मधु को साथ ले रावण का देवलोक पर आक्रमण करना
  26. सर्ग 26: रावण का रम्भा पर बलात्कार करना और नलकूबर का रावण को भयंकर शाप देना
  27. सर्ग 27: सेनासहित रावण का इन्द्रलोक पर आक्रमण, इन्द्र की भगवान् विष्णु से सहायता के लिये प्रार्थना, वसु के द्वारा सुमाली का वध
  28. सर्ग 28: मेघनाद और जयन्त का युद्ध, पुलोमा का जयन्त को अन्यत्र ले जाना, देवराज इन्द्र का युद्धभूमि में पदार्पण, रुद्रों तथा मरुद्गणों द्वारा राक्षससेना का संहार और इन्द्र तथा रावण का युद्ध
  29. सर्ग 29: रावण का देवसेना के बीच से होकर निकलना,मेघनाद का मायाद्वारा इन्द्र को बन्दी बनाना तथा विजयी होकर सेनासहित लङ्का को लौटना
  30. सर्ग 30: ब्रह्माजी का इन्द्रजित् को वरदान देकर इन्द्र को उसकी कैद से छुड़ाना,वैष्णव-यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये कहना, उस यज्ञ को पूर्ण करके इन्द्र का स्वर्गलोक में जाना
  31. सर्ग 31: रावण का माहिष्मतीपुरी में जाना और वहाँ के राजा अर्जुन को न पाकर मन्त्रियों सहित उसका विन्ध्यगिरि के समीप नर्मदा में नहाकर भगवान् शिव की आराधना करना
  32. सर्ग 32: अर्जुन की भुजाओं से नर्मदा के प्रवाहका अवरुद्ध होना, रावण के पुष्पोपहारका बह जाना, फिर रावण आदि निशाचरोंका अर्जुन के साथ युद्ध तथा अर्जुनका रावण को कैद करके अपने नगर में ले जाना
  33. सर्ग 33: पुलस्त्यजी का रावण को अर्जुन की कैद से छुटकारा दिलाना
  34. सर्ग 34: वाली के द्वारा रावण का पराभव तथा रावण का उन्हें अपना मित्र बनाना
  35. सर्ग 35: हनुमानजी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना
  36. सर्ग 36: ब्रह्मा आदि देवताओंका हनुमानजी को जीवित करके नाना प्रकार के वरदान देना और वायुका उन्हें लेकर अञ्जना के घर जाना, ऋषियों के शाप से हनुमानजी को अपने बल की विस्मृति, श्रीरामका अगस्त्य आदि ऋषियों से अपने यज्ञ में पधार ने के लिये प्रस्ताव करके उन्हें विदा देना
  37. सर्ग 37: श्रीरामका सभासदों के साथ राजसभा में बैठना
  38. सर्ग 38: श्रीराम के द्वारा राजा जनक, युधाजित्, प्रतर्दन तथा अन्य नरेशों की विदाई
  39. सर्ग 39: राजाओं का श्रीराम के लिये भेंट देना और श्रीरामका वह सब लेकर अपने मित्रों, वानरों, रीछों और राक्षसों को बाँट देना तथा वानर आदिका वहाँ सुखपूर्वक रहना
  40. सर्ग 40: बंदर , भालू और राक्षसों को अलविदा कहना
  41. सर्ग 41: कुबेर द्वारा सवार पुष्पक विमान का आगमन और श्री राम द्वारा वंदना और अनुग्रह किए जाने के बाद गायब हो जाना , भरत द्वारा श्री राम के शासनकाल के असाधारण प्रभाव का वर्णन
  42. सर्ग 42: श्री राम और सीता का अशोकवाणिक में भ्रमण , गर्भवती सीता ने तपोवन देखने की इच्छा व्यक्त की और श्री राम ने इसके लिए स्वीकृति दी
  43. सर्ग 43: भद्रा के पूर्ववासियों के मुख से सीता के विषय में सुनी हुई अशुभ चर्चा श्री राम को बताने के लिए
  44. सर्ग 44: श्री राम के बुलाने पर सभी भाई उनके पास आए
  45. सर्ग 45: श्री राम ने लक्ष्मण को अपने भाइयों के सामने व्यापक लोकलुभावन चर्चा के बाद सीता को वन में छोड़ने का आदेश दिया
  46. सर्ग 46: लक्ष्मण सीता को जंगल में छोड़ने के लिए रथ में ले जाते हैं और गंगा के तट पर पहुँचते हैं
  47. सर्ग 47: लक्ष्मण सीता को नाव से गंगा के तट पर ले गए और बड़े दु:ख के साथ कहा कि उन्हें छोड़ दिया गया है
  48. सर्ग 48: सीता के दुख भरे शब्द , श्रीराम को उनका संदेश , लक्ष्मण का जाना और सीता का रुदन
  49. सर्ग 49: मुनिकुमार से समाचार मिलने पर, वाल्मीकि सीता को सांत्वना देने और उन्हें आश्रम ले जाने के लिए उनके पास जाते हैं
  50. सर्ग 50: लक्ष्मण और सुमंत्र के बीच संवाद
  51. सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र ने दुर्वासा से भृगुरिषी के श्राप की कथा सुनाकर और भविष्य की घटनाओं के बारे में बताकर दुखी लक्ष्मण को शांत किया
  52. सर्ग 52: लक्ष्मण दुःखी श्री राम से मिलते हैं और अयोध्या में राजभवन पहुँचकर उन्हें सांत्वना देते हैं
  53. सर्ग 53: श्री राम कामकाजी पुरुषों की उपेक्षा के कारण राजा नृग को मिले श्राप की कहानी बताते हैं और लक्ष्मण को उनकी देखभाल करने का आदेश देते हैं
  54. सर्ग 54: राजा नृग ने एक सुंदर गुफा बनवाई और अपने पुत्र को राज्य देकर श्राप भोगने के लिए स्वयं उसमें प्रवेश किया
  55. सर्ग 55: राजा निमि और वशिष्ठ एक दूसरे को श्राप देकर मर जाते हैं
  56. सर्ग 56: भगवान ब्रह्मा की सलाह पर वशिष्ठ की वरुण के वीर्य की इच्छा , वरुण का अपने वीर्य को उर्वशी के पास एक कुंभ में रखना, और उर्वशी का अपने मित्र द्वारा श्राप, भूतल पर राजा पुरुरव्य के पास रहना और एक पुत्र को जन्म देना
  57. सर्ग 57: वशिष्ठ का नया शरीर और निमि का पशुओं की दृष्टि में निवास
  58. सर्ग 58: शुक्राचार्य का ययातिला को श्राप
  59. सर्ग 59: ययाति ने अपने पुत्र पुरु को उसका बुढ़ापा दिया और बदले में उसका यौवन ले लिया और बहुत दिनों के सुखों से संतुष्ट होकर उसे उसका यौवन लौटा दिया , पुरु का अपने पिता के सिंहासन पर अभिषेक किया और यदु को श्राप दिया
  60. सर्ग 60: श्री राम के दरबार में च्यवन और अन्य ऋषियों का स्वागत , श्री राम द्वारा सम्मानित किए जाने का उनका वचन और उनके वांछित कार्य की पूर्ति और संतों द्वारा उनकी प्रशंसा
  61. सर्ग 61: ऋषियों ने मधु में प्राप्त हुए वरदानों तथा लवणासुर के बल और अत्याचारों का वर्णन किया है और श्री रघुनाथ से उनके कारण प्राप्त भय को दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं
  62. सर्ग 62: श्री राम ने लवणासुर के आहार के बारे में ऋषियों से पूछा और शत्रुघ्न की रुचि जानकर उन्हें लवणासुर को मारने के लिए नियुक्त किया
  63. सर्ग 63: श्री राम द्वारा शत्रुघ्न का राज्याभिषेक और लवणासुर के भाले से बचाने का उपाय
  64. सर्ग 64: श्री राम की आज्ञा से शत्रुघ्न ने सेना को आगे भेजकर एक मास के बाद स्वयं प्रस्थान किया
  65. सर्ग 65: महर्षि वाल्मीकि शत्रुघ्न को सुदास के पुत्र कलमशपाद की कथा सुनाते हुए
  66. सर्ग 66: सीता के दो पुत्रों का जन्म , वाल्मीकि द्वारा उनकी रक्षा की व्यवस्था और समाचार से प्रसन्न शत्रुघ्न का प्रस्थान, यमुना के तट पर पहुँच गया
  67. सर्ग 67: च्यवन ऋषि शत्रुघ्न को लवणासुर के भाले की शक्ति का परिचय देते समय राजा मान्धात्य के वध की कथा सुनें
  68. सर्ग 68: लवणासुर का भोजन के लिए बाहर जाना , शत्रुघ्न का मधुपुरी के द्वार पर लटकना और लौट आए लवणासुर से उसकी क्रोध भरी बातचीत
  69. सर्ग 69: शत्रुघ्न और लवणासुर का युद्ध और लवन का वध
  70. सर्ग 70: देवताओं से वरदान प्राप्त करने के बाद, वह शत्रुघ्न की मधुरपुरी में बस गए और वहाँ बारहवें वर्ष में श्री राम के पास जाने का इरादा किया
  71. सर्ग 71: कुछ सैनिकों के साथ शत्रुघ्न का अयोध्या के लिए प्रस्थान , वाल्मीकि के आश्रम के रास्ते में, राम द्वारा रचित गीत सुनने के लिए उन सभी को आश्चर्य हुआ
  72. सर्ग 72: वाल्मीकि को विदा कर श्री राम आदि से मिलने के बाद शत्रुघ्न का अयोध्या आना और वहाँ सात दिन रहना और फिर मधुपुरी के लिए प्रस्थान करना
  73. सर्ग 73: एक ब्राह्मण अपने मृत बच्चे को राजद्वार पर लाकर विलाप करता हुआ राजा पर दोष लगाता है
  74. सर्ग 74: नारद श्री राम को बताते हैं कि एक तपस्वी शूद्र का अधर्मी आचरण ब्राह्मण लड़के की मृत्यु का कारण था
  75. सर्ग 75: श्री राम का पुष्प विमान उनके राज्य में सभी दिशाओं में दुष्ट कर्मों का पता लगाने के लिए भ्रमण करता था , लेकिन हर जगह अच्छे कर्मों को देखकर वे दक्षिण दिशा में एक शूद्र तपस्या के पास पहुँचे
  76. सर्ग 76: श्री राम द्वारा शम्बूक का वध , देवताओं द्वारा उनकी स्तुति , अगस्त्य आश्रम में महर्षि अगस्त्य द्वारा उनका सम्मान और उनके लिए आभूषणों का दान
  77. सर्ग 77: एक दिवंगत व्यक्ति के शरीर को खाने की घटना सुनकर महर्षि अगस्त्य
  78. सर्ग 78: राजा श्वेता ने अगस्त्य को उसके द्वारा घिनौना भोजन प्राप्त करने का कारण बताते हुए ब्रह्मा से अपना वार्तालाप प्रस्तुत करना तथा उसे दैवीय आभूषणों का उपहार देकर भूख-प्यास के कष्ट से मुक्त करना
  79. सर्ग 79: इक्ष्वाकु के पुत्र राजा दंड का साम्राज्य
  80. सर्ग 80: राजा दंड द्वारा भार्गव की पुत्री का बलात्कार
  81. सर्ग 81: शुक्र का श्राप राजा दंड को उसके परिवार सहित दंडित करता है और उसके राज्य को नष्ट कर देता है
  82. सर्ग 82: अगस्त्य आश्रम से श्री राम का अयोध्या लौटना
  83. सर्ग 83: श्री राम ने भरत के कहने पर राजसूय यज्ञ करने के विचार से विमुख हो गए
  84. सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध-यज्ञ में इंद्र और वृत्रासुर की कहानी का प्रस्ताव , वृत्रासुर की तपस्या और इंद्र द्वारा भगवान विष्णु से उनकी हत्या के लिए अनुरोध
  85. सर्ग 85: भगवान विष्णु का तेज इंद्र और वज्र में प्रवेश करता है , इंद्र के वज्र से वृत्रासुर का वध करके ब्रह्म-हत्या इंद्र के अंधेरे क्षेत्र में जाता है
  86. सर्ग 86: इंद्र के बिना संसार में शांति नहीं है और अश्वमेध करने से इंद्र ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाते हैं
  87. सर्ग 87: श्री राम लक्ष्मण को राजा इला की कहानी सुनाते हुए - इला को हर महीने स्त्रीत्व और पुरुषत्व प्राप्त होता है
  88. सर्ग 88: इला और बुद्ध ने एक-दूसरे को देखा और बुद्ध ने सभी महिलाओं को किम्पुरुषुशी नाम दिया और उन्हें पर्वत पर रहने का आदेश दिया
  89. सर्ग 89: बुध और इला का मिलन और पुरूरव की उत्पत्ति
  90. सर्ग 90: अश्वमेध के अनुष्ठान से पुरुषत्व की प्राप्ति
  91. सर्ग 91: श्री राम की आज्ञा से अश्वमेध यज्ञ की तैयारी
  92. सर्ग 92: श्री राम के अश्वमेध यज्ञ में दान के लक्षण
  93. सर्ग 93: श्री राम के यज्ञ में महर्षि वाल्मीकि का आगमन और कुश और लवला को रामायण गाने की उनकी आज्ञा
  94. सर्ग 94: लव-कुश द्वारा रामायण का गायन और सभा में श्री राम द्वारा इसे सुनना
  95. सर्ग 95: सीता की पवित्रता साबित करने के लिए श्री राम का सीता से शपथ लेने का विचार
  96. सर्ग 96: महर्षि वाल्मीकि द्वारा सीता की पवित्रता का समर्थन
  97. सर्ग 97: सीता की शपथ और धरती के गर्भ में प्रवेश
  98. सर्ग 98: सीता के लिए राम के पश्चाताप की व्याख्या करते हैं और उन्हें शेष उत्तरकाण्ड सुनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं
  99. सर्ग 99: सीता के रास में प्रवेश करने के बाद श्री राम के जीवन , रामराज्य की स्थिति और उनकी माता की मृत्यु आदि का वर्णन
  100. सर्ग 100: केकय देश से ब्रह्मर्षि गर्ग की यात्रा तथा श्री राम की आज्ञा पर कुमारों सहित भरत का गन्धर्व देश पर आक्रमण करने के लिए उनके संदेश के अनुसार प्रस्थान
  101. सर्ग 101: भरत का गन्धर्वों पर आक्रमण और उनका विनाश, वहाँ दो सुन्दर नगरों की स्थापना, अपने दोनों पुत्रों को सौंपकर अयोध्या लौटना
  102. सर्ग 102: श्री राम के आदेश पर भरत और लक्ष्मण द्वारा करुपथ देश के विभिन्न राज्यों में कुमार अंगद और चंद्रकेतु की नियुक्ति
  103. सर्ग 103: यहाँ श्री राम का आगमन और उनसे बातचीत करने की इच्छा एक कड़ी शर्त के साथ
  104. सर्ग 104: कालांतर में श्रीरामचंद्र ने ब्रह्मा का संदेश सुना और श्रीराम ने उसे स्वीकार कर लिया
  105. सर्ग 105: दुर्वासा के श्राप के डर से लक्ष्मण नियम तोड़ते हैं और अपने आगमन की घोषणा करने के लिए श्री राम के पास जाते हैं , श्री राम दुर्वासा मुनि को खाना खिलाते हैं और लक्ष्मण के जाने पर चिंतित हो जाते हैं
  106. सर्ग 106: श्री राम के बलिदान के बाद लक्ष्मण का शारीरिक स्वर्गारोहण
  107. सर्ग 107: वशिष्ठ के कहने पर श्री राम के पूर्ववासियों को अपने साथ ले जाने तथा कुशा एवं लवला के राज्याभिषेक का विचार
  108. सर्ग 108: रामचंद्र के भाई , सुग्रीव, बंदरों और भालुओं के साथ परमधाम जाने का फैसला करते हैं, और विभीषण , हनुमान , जाम्बवान , मैंदा और द्विविदा को इस धरती पर रहने का आदेश देते हैं ।
  109. सर्ग 109: परमधाम को गए श्री राम के साथ अयोध्या के सभी लोगों का प्रस्थान
  110. सर्ग 110: श्री राम का अपने भाइयों के साथ विष्णु रूप में प्रवेश और उनके साथ आए लोगों की संतान की प्राप्ति
  111. सर्ग 111: रामायण काव्य का निष्कर्ष और उसकी महिमा